पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२८६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काव्य-निर्णय २५१ सुप्रसिद्ध होता है, वह अन्य आरोपों के न होते हुए भी सिद्ध होता है, उसके लिये दूसरा आरोप आवश्यक वा नियत नहीं होता, पर परंपरित में एक प्रारोप दूसरे अारोप का कारण होता है, अर्थात् एक अारोप दूसरे आरोप के बिना सिद्ध नहीं होता, इत्यादि ( दे. वामनी व्याख्या-काव्य-प्रकाश, रस-गंगाधर तथा साहित्य-दर्पण )। , नयनों पर विशेष कर 'नायिका के नयनों पर, ब्रजभाषा-कवियों ने अपने- अपने सूक्ति-रलों-द्वारा गागर में सागर-भरने का सुंदर प्रयास किया है, और उसमें वे सफल ही नहीं, अधिकाधिक सफल हुए हैं। यहाँ हम केवल 'गुलाव कवि की एक सुंदर सूक्ति देते हैं, यथा- 'आबरबाँ' लखि होत 'गुलाब', की चीकन 'मखमल-हूँ सों दराज है। 'डोरिया' लाल परी है मुलाइम, जो तनजेब बढ़ान काज है। 'मलमल' हाथ रहे लखि लाखन, गाढ़े फसाय-फंसे तजि लाज है। श्राबत है कमावाब बिलोकति, नेन नहीं नए नोंखे बजाज हैं।' यहाँ, कवि-प्रयुक्त-श्रावरबा (श्राव-रबा - श्राव (शोभा ) रखाँ = फीकी पड़ जाती है, गुलाव (कवि-नाम व पुष्प-विशेष), डोरिया ( आँख के लाल डोरे, व वस्त्र विशेष ) तनजेब ( तन-जेव - तन (शरोर ) को जेब ( शोभा), मलमल (वस्त्र-विशेष व मलना) और कमख्वाब (कमख्खाव कम (न्यून), ख्वाब (निद्रा) नींद का न अाना आदि श्लिष्ट शब्द-संयुक्त नेत्ररूप बजाज ( वस्त्र-विक्रता) का सुंदर रूपक है, जो मुद्रालंकार से मझकर अति-बन-सवर ग. है । बकौल 'नूहनारवी'- 'वही है इक निगाहे नाज़ लेकिन अपने मौके पर । कभी नस्तर, कभी नावक, कभी तलवार होती है।' ____ पुनः उदाहरन भिन्न-पद ते जथा- नीति-मग-मारिबे को ठग हैं सुभग, मन:- ___ बालक-बिकल करि डारिबे को टोना हैं। दीठि-खग फाँसिबे'को लासा-भरे लागें हिय- पीजरा' में राखिबे को खंजन के छोना* हैं । पा०-१. (३०) मनु...। (प्र०) जिय...। २. (सं० पु०:प्र०) (का०) (३०) (प्र०) टोंने । ३. (का०)(a)(प्र०) कांदिवे को...। ४.(का०) (३०) (प्र०) पींजरे...। ५. (स९ पु०प्र०) (का०) (३०)(प्र०) छोंने....