पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२६५

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२३. काव्य-निर्णय प्रशंसा कलं-किन-किन को ससहूँ। इत्यादि सादृश्य-मूलक संदेहालंकार नहीं है और न एसे वर्णनों में उस-संदेह का चमत्कार ही है, वकील श्री रस- गंगाधर-कर्ता के " दासजी-द्वारा दर्शित शुद्ध संदेह का-'लखें वहि टोल में नौल बधू०", निश्चय-गर्भ का "तँम-दुख-हारन रबि कि ग." और निश्चयांत का "चारु मुख-चंद को चढ़ायौ बिधि किसुक कै." के सुंदर उदाहरण बन पड़े हैं। शुद्ध-संदेह का कवि श्री विहारीलाल का यह दोहा भी अति प्रशंसित है, यथा- "हों-हीं बौरी विरह-बस, के बौरौ सब गाँउ । कहा जाँनि ए कहत है, ससि-हिं सतिकर नाँउ ॥" अथ सुमन लच्छन जथा- कछ लखि, सुनि, कछु सुधि किएँ', सो 'सुमरन' सुख-कंद । "सुधि श्रावति ब्रज-चंद की, निरखि सँपूरन-चंद ॥" उदाहरन जथा- लखें सुधि-दान पखाँन ते जॉन, मयूरन देति भगाइ-भगाइ । मॅने' कै दियो पियरे पैहराब कों५, गाँउ में प्यादे लगाइ-लगाइ॥ भुलाबति वाकेहिए ते हरी', कथान में 'दास' पगाइ-पगाइ। कहा कहिऐ पिय बोलि पपीहरा बिथा तन' "देति जगाइ-जगाई वि०-"दासजी के इस छंद को भारतेंदु जी ने "सुंदरी-तिलक' में तथा 'रसकुसुमाकर' के संग्रह-कर्ता ने 'मध्या प्रोपित्पतिका' के उदाहरणों में, भानुजी ने 'स्मरण' अलंकार के उदाहरण में और "काव्य-कानन" के संग्रहकर्ता ने फुट- कल, बिना किसी शीर्षक के संग्रह किया है। पा०-१. (का०) (३०) करीय...। २. (३०) पयाँन ते...। (र० कु०) लखें सुख-दौनि पखाँम सौ जान...। (सु० ति०) जान पखानन की सुधि हेत । (का० प्र०) लखें सुख-दान पयान ते...। ३. (३०) (का० प्र०) भगाई । ४. (र० कु०) मना ..। ५. (सु. ति०) सु.... (३०) (का० प्र०) लगाई । ७ (सु ति०) भुलावती। . (का०) (३०) (का० प्र०) बाके . । ६. (का०) (३०) (प्र०) (का० प्र०) हरी-हि, कथान...। (र० कु०) हरें ही, कथान.... १०. (३०)(का० प्र०) पगाई। ११ (प्र०) का। १२. (सु० ति०)...यह पापी पपहिरा, बिथा हिय देतु.... १३. (प्र०) (का०) (३०)(र० कु०) (का० प्र०) पपीहा...। (रा० पु०- का०) पपैया । १४. (का०) (३०) (२० कुँ०) (का० प्र०) जिय । (सु ति०) हिय..... १५. (३०) (का० प्र०) मगाएँ ।

  • १० कु. (म०) पृ० १२०, ३२६ । मुं. ति० (भा० ) १० १०१,६१६ । का० ..

(मा०) ५० ५०१ । काका (च.) १०१०