पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२२४

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काप-निर्णय अथ प्रथम उदाहरन सत बाक्य की एकता ते जथा- तीरथ तौ' मॅन न्हॉमन कों, बहु दॉनन दै तप-पुज तपै तू। जोम के साँमुहें जंग जुरै, दृढ़ होम के सीस धरै भरि पैतू॥ 'दास' जू वेद-प्ररॉनन कों करि कंठ मुखागर नित्त लपै तू। चौस-तमाम में जो इक जाँम-हूँ, राँम को नाम निकाँम जपैतू ।। वाक्यारथ असत को एकता ते जथा- प्रॉन-बिहीन के पाइ' पलोटि, इकेलें हूँ,५ जाइ धैंने बँन रोयौ । पारसी अंध के आगे धरी, बैहरे ते मतो करि उत्तर जोयौ । ऊसर में बरस्यौ बहु बारि, पखाँन के ऊपर पंकज बोयौ । 'दास' वृथाँ जिन साहब ा म के, सेबँन में अपनों दिन खोयौ ।।* वाक्यारथ असत-सत की एकता ते जथा- जुगनू हूँजु भाँन के आगे भली-बिधि, आपनी जोत कौ गुन गइ है। माँखी हूँ'३ जाइ खगाधिप सों उड़िबे की बड़ी-बड़ी बात चलह ४ है ।। 'दास"५ जवै तुक-जोनहार, कबिंद उदारन की सरि पह' है। तौ करतार-हु सों औ कुम्हार सों, एक दिनाँ झगरौ ठनि'" जइ है ।। वि.-"वेंकटेश्वर की प्रति में इसके बाद "श्रस्य तिलक" की पगड़ी बाँध कर लिखा गया है- "जुगनू जो है सो मार्तंड के सामने ज्योति की प्रशंसा करेमा, माखी जो है सो गरुड़ के सामने अपने उडिबे की प्रशंसा करेगी, तुक जोरने वाले जितने हैं सो कवियों के सामने प्रशंसा करेंगे अपने बनाने की, तौ हे भाई करतार, जो है ब्रह्मा और कुम्हार जो है सो इनमें तकरार होगी।" पा०-१. (सं० प्र०)...तोम नहामनि कै . । (प्र० मु०) तो मन न्हाननि.... (३०) तो मन हाननि के...। २. (३०) कै...। ३. (सं० प्र०)...में भाठ-हूँ जाम में...। ४. (३०) पाँइ पै लोट्यो ... (प्र० मु०) पाँइ पलोट्यौ...। ५ (प्र०) (३०) है..। (प्र०-३) इकले है जाइ...। ६. (३०) (प्र० मु०) धरयो । ७.(३०)(प्र० मु०) सो...। . (सं० प्र०) जस...। ६. (सं० प्र०) की...। १०.(सं० प्र०) जूग भानु..। (३०) जोगनू भानु ..। ११. (सं० प्र०)(३०) ज्योतिन के गुन...। (प्र० मु०) जोतिन्ह के ..। १२. (सं० प्र०) (प्र०)(३०) गै है। १३. (सं० प्र०) (प्र०)(३०)(प्र० मु०) माखियो जाइ.. । १४. (सं० प्र०) (प्र०) (प्र० मु०) चले है। १५. (सं० प्र०) 'दास' जू पै तुक जोरनहार...। १६. (सं० प्र०) (प्र०) (३०) (प्र० मु०) पै है। १७. (सं० प्र०) (प्र०) (३०) (प्र० मु०) बनि ऐ है ।

  • क० को० (रा० न० त्रि०) पृ० ४०३ प्रथ० भा० ।