पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२२३

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१८८ काम्य-निव और पंचम निदर्शना भी मानी है। इसी प्रकार असंभव-वस्तु-संबंधा से भी प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और पंचम निदर्शना भी मानी है। सत्-सत् वाक्यार्य की एकता में, असत्-सत् वाक्यार्थ की एकता में, पदार्थ की एकता में और क्रिया की दूसरी क्रिया की एकता में निदर्शना कही सुनी जाती है। मतिराम जी ने भी निदर्शना के प्रथम, द्वितीय, तृतीय भेद कह सत्-असत् रूप से पांच भेद तथा पद्माकर जी ने-प्रथम, द्वितीय के अनंतर सदर्थ-असदर्थ रूप से चार-ही भेदों का उल्लेख किया है । अन्य प्राचार्यों ने निदर्शना के मुख्य भेद तीन ही माने हैं, जैसे- ___ "१. प्रथम निदर्शना--"जो, सो, जे, ने आदि शब्दों-द्वारा असम वाक्यों को सम करना। २. द्वितीय निदर्शना-"उपमान के गुण उपमेय में स्थापित करना ।" ३. तृतीय निदशना-उपमेय के गुण उपमान में स्थापित करना" आगे इन श्राचार्यों का यह भी कहना है कि 'दृष्टांत अलंकार' में भी निद- र्शना की भांति उपमे:-उपमान वाक्यों का परस्पर में विब-प्रतिबिंब भाव होता है, पर वे वहाँ निरपेक्ष होते हैं, अर्थात् वहाँ उपमानों के वाक्याथ में दृष्टांत दिखलाकर उपमेय के वाक्यार्थ की पुष्टि की जाती है और निदर्शना में उपमेय-उपमान-वाक्य परस्पर में सापेक्ष होते हैं, क्योंकि यहाँ उपमेय के वाक्यार्थ में उपमान-वाक्यार्थ का अारोप किये जाने के कारण दोनों का परस्पर संबंध रहता है, अर्थात् निदर्शना- दृष्टांत में यही भेद है कि प्रथम में वाक्य वा वाक्यों का अर्थ तब तक पूर्ण नहीं, जब तक कि वित्र प्रति-विंब-भाव से साम्यता का अारोप न किया जाय, तब तक निदर्शना नहीं ओर दृष्टांत में अर्थ पूरा बैठ जाने के बाद विव-प्रतिबिंब भाव से माम्य ज्ञान होता है । निदर्शना में साम्य का आरोप इसलिए किया जाता है कि वहाँ दो वस्तुओं में संबंध स्थापित हो, तथा दृष्टांत में अर्थ पूरा होने पर साम्यता की प्रतीति होती है । दृष्टांत में दो स्वतंत्र वाक्य विंव-प्रतिबिंब रूप में होते हैं, निदर्शना में वर्य-वाक्य का अर्थ दूसरे वाक्य के अर्थ से सामंजस्य मिलाने के लिये अन्य प्रकार से प्रारोपित किया जाता है। अलंकार-श्रा कार्यों ने रूपक और निदर्शना में भी भेद दिखलाते हुए कहा है कि "जहाँ कर्ताओं का अभेद शब्द-द्वारा कथन कर क्रियाओं का अभेद शन्दों से न कह कर अर्थ के द्वारा कराया जाय वहाँ निदर्शना और जहाँ कर्ताओं का अमेद-शब्द-द्वारा न कह कर अर्थ से बोध कराया जाय तथा क्रियाओं का अभेद शब्द द्वारा कराया जाय, वहां रूपक होता है।"