पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१४७

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११२ काव्य-निर्णय जलपति, जकाति, कहराति, कठनाति प्रति, मोहति, मरति, बिललाति, बल-खाति है। उँनदति, मनसाति सु प्रति सधीर चोंकि, चाहि चिंत समित स गई इरखाति है। "इति श्री सकल कलाधर-कलाधस्वंसावतंसधीमन्महाराज कुमार श्री बाबू हिंदूपति विरचिते 'कान्य-निरनए' रसभाव अपरांग बरनन पंचमोल्लासः।"