पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१२०

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काव्य-निर्णय मान वियोग-विप्रलंभ शृंगार-रसांतर्गत है। अस्तु, दासजी ने यहां प्रथम-'विरह', तदनंतर 'मान-वियोग' और बाद में 'प्रवास-वियोग का वर्णन किया है। साप-हेतुक-बियोग वरनन 'दोहा' जथा- सब ते माद्री-'पाँडु को साप भयो दुख दाँनि । बसिबी एक-हि भोंन को, मिलत प्रॉन की हाँनि ॥ __“इति विप्रलंभ शृंगार-रस वर्णन" अथ बाल-विष रति-भाव वरनन जथा- चूँमिबे के अभिलान-पूरिकें, दूरि ते माँखन-लीने बुलावति । लाल गुपाल की चाल बकैयन, 'दास' जू देखति हो बनि आवति ॥ ज्यों-ज्यों हँसें बिकसे दतियाँ, मृदु-ऑनन-अंबुज में छबि छावति । त्यों-त्यों उछंग लै प्रेम-उमंग सों नंद को राँनी, अनंद बढावति ।। अथ मुनि-विषै रति-भाव बरनन जथा- माज बड़े सुकृती हम-ही भए', पातक-हाँनि हमारी धरा तें। पूरब-हूँ किए पुग्न बड़े-ई' (जु) भयौ प्रभु को पद धारिबौ तातें ॥ आगॅम सब भाँति भलौ-ई, बिचारिऐ२ 'दास' जू एती कृपा तें। श्रीरिषिराज, तिहारे मिलें हमें जॉन परीं तिहु-काल की बातें। "इति श्री शृंगार-रस वर्णनः" अथ हास-रस उदाहरन जथा- कोक 3 एक दास काऊ साहब की आस में, कितेक दिन बोत्यौ रीत्यो सब भाँति बल है। पा०-१. (३०) माद्रा... | २. (भा० जी०) जु" । ३. (३०) पूरक... । ४.(प्र०-३) पुकारति । ५. (प्र०-३) छाजति । ६. (भा० जी०) रानि"। ७. (वे.) आजु" (३) भयो... म. (सं० प्र०) हाते " | 8. (सं० प्र०) (वे.) किंयौ । १० (प्र०) (३०) बडोई"। (सं० प्र०) बड़ौ,"। ११. (सं० प्र०)(३०) भापकों . . . । १२. (३०) बिचरिबौ । १३ (प्र०)(३०) काह..।। १४. (सं० प्र०) दास..। १५. ( स० प्र०) (३०) पास में। १६. (प्र.) बीते...।