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"कवि दास की जीवनी और रचनाएँ"

मध्य कालीन ब्रजभाषा-साहित्य के रीति ( लक्षण प्रथ-नायिका भेद,अलंकारादि ) प्रणेताओं में कविवर 'श्री भिखारीदास' का स्थान ऊँचा ही नहीं,निराला और सुंदर है, यह निर्विवाद है। अस्तु आपके जाति, कुल, ग्रामादि का इतिहास जबतक हिंदी-भाषा के इतिहास ग्रंथों में उल्लिखित अल्प प्रथ-नाम-सूची में ही निहित रहा, तब तक वह अंधकार से आवृत्त रहा और ज्यों-ज्यों वह श्रापकी नयी नयी रचनात्रों के साथ खोज और प्राप्ति के बाद प्रकाशन के खले क्षेत्र में आने लगा त्यों-त्यों आपका जीवन से संनद्ध इतिहास स्वच्छ होकर द्वितीया के चंद्र की भाँति निरंतर प्रकाशवान होता गया। अतएव अब कविवर 'भिखारीदास'उपनाम-'दास' के जाति, कुल और ग्रामादिका उल्लेख तथ्य रूप से निसंकोच और वह भी आपके-ही शब्दों में, कहा जा सकता है कि श्री भिखारी दास जी--"जाति के बहीवार वर्ण के कायस्थ, पिता कृपाल दास, पितामह वीरभानु प्रपितामह रामदास, भाई चैनलाल, जन्म-स्थान टोंग्या ( ₹उगा ),अरबर प्रदेश के निवासी थे, जो प्रतापगढ़ (अवध) से तनिक दूर है,यथा:

"अभिलाषा करी सदा ऐसन का होय बृरथ,

   सब ठौर दिन सब याही संवा चरचाँन।

लोभा लई नीचे ग्याँन चलाचल ही की मंसु,

   अत है क्रिया पातल निंदा-रस-ही को खाँन ॥

सेनापती देवीकर प्रभा गनती की भूप,

   पन्ना, मोती, हीरा, हेम सौदा हास ही की जाँन।

हीय पर जीव पर बदे जस रटे नाउँ,

   खगासन, नगधर, सीतानाथ कौल पान॥"

यह विवरणात्मक छंद (वित्त) 'काव्य-निर्णय' के उन्नीसवें उल्लास में 'चित्रालंकारों के साथ प्रस्तुत पुस्तक के पृ० ६१६ पर और 'छंदार्णव' (पिंगल) के आदि में मिलता है। विवरण चित्रात्मक है, जिसे कठिनता से एक-एक अक्षर क्रमशः बाद देकर दूसरे दूसरे अक्षर पढ़ने से जाना जाता है।इसलिये दासजी ने इस छंद की गूढता-निवार्थ-अपने जाति, कुल, ग्राम और पिता-पितामह के नामादि की शीघ्र जानकारी के लिये इसके साथ एक

१, शिवसिंह-सरोज, पृ० ४.। हस्स-लिखित 'हिंदी' पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण, श्यामसुंदरदास, पृ० ११। हिन्दी काव्य-शास्त्र का इतिहास डा० भगीरथ मिश्र, प. १५५।