पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/११७

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८२ काव्य-निर्णय दासजी ने भी स्वप्न-दर्शन का सुंदर उदाहरण अपने 'शृगार-निर्णय' में प्रस्तुत किया है। साथ ही वहाँ अापने-"छाया-दर्शन, माया-दर्शन, चित्र- दर्शन और श्रुति (श्रवण ) दर्शन के भी सुदर उदाहरण दिये हैं।" अथ प्रबास-हेतुक वियोग बरनन जथा- पीतम गए बिदेस जो, बिरह-जोर सरसाइ । वही 'प्रबास'-बियोग है, कहें सकल कबिराइ ॥ अस्य उदाहरन 'कबित्त' जथा- चंद चढ़ि देखों चारु आँनन प्रबीन गति, लीन होत माँते गजराजन कों ठिल-ठिल । बारिधर-धारन ते बारन यों है रहे, पयोधरन' छवै रहे पहारन कों पिल-पिल ।। दई, निरदई 'दास' दीनों हैं बिदेस तउ, करों न देस तुब ध्यॉन-हीं में हिल-हिल । एक दुख तेरे हों दुखारौ प्रॉन प्यारी मेरौ'.- मँन तोसों नित(ही) श्रावत है मिल-मिल ||* वि०-"दास जी ने यह कवित्त श्रृंगार-निर्णय में 'प्रोषित नायक के और रसकुसुमाकर के रचयिता ने 'प्रोषितपति' के उदाहरण में दिया है--संकलित किया है । प्रोषित पति- "ब्याकुल होइ जु विरह-बस, बसि बिदेस में कंत । ताही को 'प्रोषित' कहें, जो कोविद बुधिबंस ॥" -म० म० (अजान )पृ० १८ प्रोषित-नायक का वर्णन 'पद्माफर' जी ने अपने नायिका-भेद के प्रथ 'जगविनोद' में बड़ा सुंदर किया है, यथा-- पा०-१(३०) प्रबाल... | २. यह दोहा 'समेलन-प्रयाग' की प्रति में नहीं हैं। ३. (प्र०) (भा० जी०) (३० ) देखे...। ४. (३०) हो तो...। ५. (प्र.) (सं० प्र०) (०)(र० कु०) पै...। ( नि०) ये...। ६. (३०) पयोधनि कों ज्वै रहै ..। ७.(20- नि०) अंदसौ . । ( २० कु०) अर्नेस...। . (भा० जी०) (३०) तेरी..... ( नि०) है...। १०. (प्र०) (१० नि०) (सं० प्र०)...नत प्रॉन-प्यारी । (३०) दुखारी नित... ११. (a) आवतो...।

  • ० नि० [मि० दा०] पृ० ६६, २६५ | र० कु० (१०) पृ० १६२, ४४६ ।