पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१००

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अस्य विलक यह 'स्लेस', बिल्ट' भी निवासको तीनों प्रकार Rait, जात र प्रसर बन्यों जाता है। पुनः दोहा' जथा- मंथ-गूद-बँन वरपनी, गोंनी गॅनिका बाल । इँन की सोभा तिलक है, भूमि, देव, भूपाल । अस्य तिलक हा- 'स्वोस' 'दीपक' भी 'तुक्लजोगता'-पादि तीनों प्रकार (सम) प्रधान हैं, ताते 'संकर' को जात है। संदेह-संकर अलंकार उदाहरन 'कवित्त' जथा-- कलप कॅमन बर बिंबन के बैरी, बंधु- जीवन के बैरी लाल लीला के धरैन हैं। संझा के सुमन, सूर-सुन मँजीठ-ईठ, . कौहर मॅनोहर की भाभा के हन हैं। साहब सहाब के गुलाब, गुडहर, गुर, ईगुर-प्रकास 'दास' लाली लग्न हैं। कुसुम अनार कुरविंद के अंकुरकारी, निंदक-पँवारी प्रॉन-प्यारी के चरन हैं। अस्य तिलक इहाँ 'उपमा', कै 'प्रतीप', के 'उल्लेख', के वितरेक' चारों अलंकारन को 'संदेह संकर' है। याकों 'संकीरन उपमा' हूँ कहत हैं। पुनः उदाहरन 'दोहा' जथा-. बंधु, चोर, बादी, सुहृद, कल्प कल्पतर जॉन । गुरु-रिपु-सुत प्रभु कारन-हिं, 'संकीरँन' उपमान ॥ वि०-"दासजी ने अपने 'काव्य-निर्णय' के इस 'तृतीय-उल्लास' में 'अलंकारों' का सक्षिप्त ( सूक्ष्म ) रूप से (ब्रजभाषा के अन्य अलंकार-प्रय 'भाषा-भूषण' जैसे-एक-ही छंद में लक्षण और उदाहरण ) वर्णन किया है पा०-१. [प्र०] [सं० प्र० ] बंधु'" | प. [ भा० जी० ] सरन ।