[कालिदास का प्राविर्भाव-काल । माजाओं का एकछत्र राज्य भारतवर्ष में चला आता है। पद्यपि उन्होंने साकेत के उपयन में रामचन्द्र को उसी पुरानी अयोध्या में अपनी राजधानी की स्थापना कर दी है, यद्यपि उन्होंने हूणों का पराभव कर दिया है।-तथापि प्रार्य जाति का यह अभ्युदय स्थायी नहीं, क्षणिक है। पण्ड राज्यों में विभक्त होकर भारत की दशा फिर शीघ्र ही अवनत हो जायगी। पाप लोग सोचते होंगे कि रघुवंश में गुप्त-राजाओं का प्रच्छन्न प्रवेश हो गया। उसमें गुप्त- राजाओं के संसर्ग का ज्ञान कहाँ से तुमने प्राप्त किया ? सुनिए। भारतवर्ष के नेपोलियन समुद्रगुप्त का नाम श्राज यहाँ पाश्चात्य पण्डितों की कृपा से मुपरिचित हो रहा है। पह, उसका पुत्र द्वितीय चन्द्रगुप्त, जिसे आजकल के इति- हासा विक्रमादित्य यतताते हैं, उसफा पौत्र कुमारगुप्त और प्रपौत्र स्कन्दगुप्त समी भारतवर्ष के एकच्छत्र राजा थे। इन गुप्तवंशी राजाओं ने राजसूय-यत तक किया था। अयोध्या में इन्होंने अपनी राजधानी भी स्थापित की थी। इसी कारण रघु के घंशधरों के साथ, साहित्य में, ये भी शामिल हो गये हैं। आजकल एक प्रकार से यह निश्चित हो गया है कि फालिदास ने रघुवंश की रचना किसी गुप्तवंशी राजा की प्रसन्नता के लिए ही की थी। किसी किसी का मत तो यहाँ तक है कि कुमारगुप्त या स्कन्दगुप्त के जन्मोपलक्ष्य में ही
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