[ कालिदास का प्राविर्भाय-काल । लिखने का मतलब यह है कि कालिदास का प्राविर्भाव ऊपर यतलाये हुर किसी भी युग में नहीं हुआ। प्रतपय भारतीय साहित्य को जरा देर के लिए प्रनतत्व के भंवर से बाहर नि. फालकर, साहित्य-सेयी को एि से हम उसमें कालि- दास का स्थान निर्टि ए करना चाहते हैं। हम दिखाना चाहते हैं कि कालिदास का युग संस्थत साहित्य में एक प्रभुत युग है। उस समय उसके लिए यही समय था जिसे मैथ भानल्ड ने "नथ्य युग" कहा है। उसे माहेन्द्रयोग कहना चाहिए। इस महान किन्तु क्षणापायी "नव्य युग" का श्रायिर्माय उस समय होता है जिस समय किसी जाति के जीवन का पहलेपहल उन्मेष प्रारम्भ होता है अथवा उसके अन्तिम सङ्गीत का समय प्राता है -जिस समय विज्ञान, समाज, धर्म, साहि- त्य श्रादि सयके तत्व समभाव से सम्मान प्राप्त करते और उन्नत होते हैं - जिस समय साहित्य में इह-जगत् और पर- जगत् दोनों, पाणी और अर्थ की तरह, परस्पर सम्मिलित देख पड़ते हैं। इस युग के आविर्भाव के समय ही हमें सय प्रकार की विद्याओं और कलाओं में निष्णात, सव प्रकार की रचनाओं के पारदर्शी, कोई गेटो, टालस्टाय या कालिदास प्राप्त होते हैं। नहीं कह सकते, हमारा यह मत उस समय टिकेगा या नहीं जब सारा मंस्कृत-साहित्य प्रन-तत्यविशा
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