कालिदास । फा भी भेद मालूम नहीं पड़ता। उस समय जान पड़ता है, मानों सत्ययुग की तरह पृथ्वी मधुपूर्ण हो गई है, और कोई शान्त तथा उदार होमर या महर्षि पारमाफि मधु-पए कर रहे हैं। ऐसा मम:-ऐसा युग-भान करने का सौभाग्य याहुत कम जातियों को होता है। मभयुग के यार पारितगड़ा और दरवन्दी का समय प्राता है। यह समय सर्वत्र परि. वित है । इमे चाहे Renaissance कहिए, चाहे नशेत्यान। यात एक दी है। अचानक एक दिन निता भार हो जाती है। जाति पैदा हो जाती है। कवि अपनी फपिना मारापरणा करने लगते है-यह जीवन गुपोपमोगही के लिए है, जीपन के उपभोग और और के अकर्ष के लिए कोचर को उ. पारसना को पाया है। पोशिलो भीर कारण, कहिानगुरु भास और शेषसपिपर भावि गंगार में राय. मोहोते हैं। पाहांक-गत माणिों के सिप में फरभी कारने का प्रयास नहीं उठाने । जीव-जगत को नियको नरामा मममसर गीका घे पोग धाम कर देते हैं। मी मम .frr TET मा गुगने के लिए एक और प्रकार के भी मांग जन्म मे मका जलाल खटम पति ने लिए, और ant द्वारा अभियन्ता विनों की मानो समझाने के लिए
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