। कालिदास का आविर्भाव-काल । उत्कीर्ण शिला-लेखों की पुस्तक, के तीसरे भाग में यह लेख दिया हुआ है। इन प्रमाणों से यह सिद्ध सा है कि कालि- दास गुम-नरेश दूसरे चन्द्रगुप्त की सभा में थे और उसके साथ चे उज्जैन गये थे। इस निश्चय की पोषकता में और भी कई प्रमाण दिये जा सकते हैं। चन्द्रगुप्त द्वितीय के पिता का नाम समुद्रगुप्त था। समुद्रगुप्त दिगविजयी राजा था। इलाहाबाद की लाट पर समुद्रगुप्त की जो प्रशस्ति खुदी हुई है उसमें उग प्रदेशों के नाम हैं जिन्हें समुद्रगुप्त ने जीता था। रयुषंश में कालिदास ने रघु के दिग्विजय का वर्णन करते समय ग्घु के मारा जिन प्रदेशों का जीता जाना लिखा है ये सय समुहगुप्त के द्वारा जीसे पपे प्रदेशों के नाम प्रादि से प्रायः ठीकठीक मिलते हैं। इससे यह अनुमान करना अनुचित न होगा कि अपने आश्रय-दाता चन्द्रगुप्त के पिता के विजय को ध्यान में ग्यार ही कालिदास ने rg पे दिग्यिभय का पर्णन किया है। कालिदास ने मेघदून में दिड नाग नामक यौद्ध- मेयायिक का उल्लेख किया है। इस दिमाग का ऐतिहा. सिक पता लग गया है। पौद साहित्य के प्रयलोकन और चीनी-परिमाशक हनमाल के भ्रमण-गुमान्न के पामे हाल होता है कि मनोरथ नामक पारागिन के दो शिष्य
पृष्ठ:कालिदास.djvu/७९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।