कालिदाप। के चन्द्रमम' और 'दु शब्दों में द्वितीय चन्द्रगुप्त की ध्वनि निदिन कर दी है। इम मिसान्त के पुकरण में और भी यहुत कुछ कक्षा हा मकना है। दिलीप और रघु का चरित, जैमा कि फालिदास ने चित्रित किया है, विलक्षणता मे खाली नहीं। चन्दगुम से कालिदास का सम्बन्ध मान लेने से इस रिलतणता का कारण भी समझ में आ जाता है। प्र पुगल-कथामो में यह कहीं नहीं लिखा कि दिली अश्वमेघ यस किया था। रघु के दिग्विजय का उ भी उन महो। यदि हम यह मान लेते हैं कि कालिदा द्वितीय चन्द्रगुप के चरित को आदर्श मानकर रघु चरित चित्रित किया है तो दिलीप और रघु के विप जो नई नई बातें उन्होंने कहीं हैं उनका माराय तत्कार ध्यान में श्रा जाता है। रघुवंरा में जिन राजाओं का वृत्त है उनमें ग्घु और राम हो धेष्ठ है। रामचन्द्र का चरित इतना विशुत है कि उसको श्रादर्श मानकर अपने ग्राम दाता द्वितंय चन्द्रगुप्त के चरित का चित्रण करना फालिद ने मुनासिब नहीं ममझा। इसीसे उन्होंने रघु को चा गुप्त का प्रतिनिधि बनाया। कालिदास के प्राश्रयदाता द्वितीय चन्द्रगुप्त के पि ___ का नाम समुद्रगुम था। इस समुद्रगुप्त ने अश्वमेघ-र
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