कालियामा प्रयन्ती का भी। अच्छा सा ईमवी सन् केशाय शतक के अन्त में एंमा कोई गला था भी ! जार था। उसका नाम पग था ! उसका नाम था द्वितीय चन्द्रगुन । इतिहास- बेताओं ने लिया किमगम के सिंहासन पर उस समय यही गजारािजमान था और इसीने प्रयन्ती को जीतकर उसे भी अपने राज्य में मिला लिया था। अतएव, सिर सुम किसी राजा के प्राध्य में कालिदास । इस सिद्धान्त की पुष्टि में कितनी ही पान कही जा सकती है। रघुवंश के छठे सर्ग में इन्दुमती जय मगधाधिप और अयन्तिनाथ के सामने हुई तय यद्यपि उसने उनमें से एफ को भी पसन्दन किया तथापि यह उनसे घड़ी ही श्रद्धा और भक्ति से पेश आई। न उनके सामने उसने कोई अनादर-सूचफ चेश ही की, न कोई प्राक्षेपयोम्प यात ही फही । परन्तु और राजाओं का उल्लंघन, घृणा और तिरस्कार-पूर्वक, करके यह आगे यढ़ती गई। इससे स्वित होता है कि कालिदास को मगध और श्रवल्ली के राजा का मावर मंजूर था। जिस समय रघुवंश का पूर्वाद्धं लिखा गया उस समय रुद्रदामा का विजेता मगधाधिप द्वितीय चन्द्रगुप्त यदा हो चला था। कालिदास ने स्वयंवर में आये भगध-नरेश का नाम परन्तप लिखा है। उसे इन्दुमती पसन्द न किया। कालिदास के इस लेख की विशेष परवा .६४
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