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[कालिदास का प्राविधि-काल। व्याकरण-विषयक प्राज्ञा सर्वमान्य हो चुकी थी। अतएय उसका किसीने उल्लघंन नहीं किया। पर कालिदास के समय में यह बात न थी। तच पाणिनि के किसी किसी नियम का पालन न भी किया जाता था। इसीसे कालि- दास श्रीर अश्वघोष के फायों में पाणिनि की प्राशा के प्रतिकूल प्रयोग पाये जाते हैं। श्रतएव इसमें सन्देह नहीं कि कालिदास, मारवि और सुबन्धु के पहले के हैं। फालिदास के अन्यों का आकलन करने से झात होता है कि उनका ज्योतिए-विद्या-विषयक ज्ञान गहन न था। श्रतपय वे पार्यभट्ट के बाद के नहीं हो सकते। वराह- मिहिर के ये समकालीन भी नहीं हो सकते। पोंकि इस समकालीनता का सूचक एक-मात्र नवरत-बाला पद्य है, जो प्रमाण योग्य नहीं। यह पद्य ज्योतिर्विदाभरण का है। इस पुस्तक को रचना किती अर्वाचीन जैन-पण्डित की जान पड़ती है। इसकी संस्कृत महा अशुद्ध है। इसका पूर्वोक्त श्लोक कदापि विश्वसनीय नहीं । कालिदास यद्यपि उज्जयिनी-नरेश की सभा के सदस्य थे तथापि उजयिनी उनकी जन्मभूमि नहीं कही जा सकती । कालिदास को ग्रीष्म ऋतु से सविशेष प्रेम था। उन्होंने अपने कार्यो में इस ऋतु का वर्णन कई जगह किया है। हिमालय-प्रदेश के दृश्यों से भी उनका अधिक परिचय था । जहाँ कहीं उनका वर्णन उन्होंने किया