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कालिदास ।]
 

सप्तनवत्यधिकेप्येकादशमु शतपतीतषु ।
पाणां विकमती गणरत्नमहोदधिपिहितः ।

इसका पता नहीं चलता कि कय और किसने मालय-संव का नाम विक्रम-संयत् कर दिया। सम्भय है, यह परिवर्तन भ्रम सं हुआ हो। मालवगस्थित्याद एक तो यहुत सम्म नाम है, फिर कर्णमधुर भी नहीं। इसीसे किसीने कथा सहस्र के नायक कल्पित विक्रमादित्य को मालवेश्वर समझ फर उसीके नाम से इस संवत् को प्रसिद्ध कर दिया होगा।

अच्छा, तो अब कालिदास के विक्रम का पत लगाना चाहिए। कालिदास शुरै राजापों से परिचित थे। घे फलित-ज्योतिप भी जानते थे और गणित-ज्योतिष भी । मेघदूत में उन्होंने वृहत्कथा की कथाओं का उल्लेख किया है।

सीमाप्रान्त को हुए आदि जातियों का भी उन्हें पान था। उन्होंने अपने अन्यों में, पातझल के अनुसार, कुछ व्याकरण-योग जान-बूझकर ऐसे किये हैं जो बहुत कम प्रयुक्त होते हैं। इन कारणों से हम कालिदास को ईसवी सन का पूर्ववर्ती नहीं मान सकते। वे उसके बाद हुए हैं। पतञ्जलि ईसा के पूर्व दूसरे शतक में थे। उनके याद पाली की पुत्री प्राकृत ने कितने ही रूप धारण किये। पह यहाँ सक प्रयल हो उठी कि कुछ समय तक उसने संस्कृत को प्रायः दवा सा दिया। अतएव जिस काल में