कालिदास ।] नं० (२) लेख में पण्डित रामायतार शर्मा के मत का उल्लेख हो चुका है। इस तेख में पाण्डेय जो की उक्तियों का सारांश दिया जाता है। कालिदास नाम के कई संस्कृत-रिद्वान् हो गये हैं। कोई एक हजार वर्ष पहले, अपना नाम कालिदास रखने की चाल सी पड़ गई थी। कोई फालिदास का नाम पदयों के तौर पर अपने नाम के पीछे कगाता था, कोई अपना निज का नाम छोड़कर कालिदास ही के नाम से अपने को प्रसिद्ध करता था, को अभिनय कालिदास पनता था। रागशेपर नामक एक जैन कवि हो गया है। उसने चरनी मूक्ति- मुनारली नामक पुस्तक में तीन कालिराम होने का उल्लेख किया है- एकोऽपि नीयत इन्त कानिमामीन फेनधित् । नारे समितीद्गारे कालिदायी किमु॥ नरगाहमाद-धारित के कता गुमने प्रामा माम परिमम-कालिदास रमा था। यह धाराधिप गुन का समा-कवि पा। मौज के सामन-समय में भी एक कानिहाम हो गया है। ज्योतिर्षियामर और शाम मामा ज्योतिर प्रन्यों के कांधों का नाम मी कालिदागही था। रघुवंग ग्रादिकानों का विग्भुित कालिबाग ५०
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