[ कालिदास का प्राविर्भाय-काल । वर्णन से स्पष्ट है कि काश्मीर के इतिहास का सम्बन्ध दो विक्रमादित्यों से रहा है। एक मातृगुप्त को भेजनेयाले हर्ष-- विक्रमादित्य से, दूसरे प्रतापादित्य के सम्बन्धी शकारि विक्रमादित्य से। इनमें से हर्ष-विक्रमादित्य ईसा की छठी शताब्दी के प्रथमार्द्ध में विद्यमान् था। रहा शकारि विक्रमा- दित्य, सो यह हाल की सप्तशती में वर्णन किये गये विक्रमा- दित्य के सिवा और कोई नहीं हो सकता। ईसा के पूर्व, प्रथम शतक में, शकों का पराभव करनेवाला यही था। इसका एक और प्रमाण लीजिए- विन्सेंट स्मिथ साहय ने अपने प्राचीन भारतवर्ष के इतिहास में लिखा है कि शक-जाति के म्लेच्छों ने, ईसा के कोई १५० वर्ष पहले, उत्तर-पश्चिमाञ्चल से इस देश में प्रवेश किया। उनकी दो शाखायें हो गई। एक शाखा के शकों ने तक्षशिला और मथुरा में अपना अधिकार जमाया और क्षत्रप नाम से प्रसिद्ध हुए। इनके सिक्कों से इनका पता ईसा के १०० वर्ष पहले तक चलता है। उसके पीछे इनके अस्तित्व का कहीं पता नहीं लगता। दूसरी शाखावालों ने ईसा की पहली शताब्दी में काठियावाड़ को अपने अधिकार में किया। धीरे धीरे इन लोगों ने उज्जैन को भी अपने अधीन कर लिया। न्हें गुप्तवंशी राजाओं ने हराकर उत्तर की ओर भगा दिया। अच्छा, तो इनके पराभवकर्ता तो गुप्त
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