हुआ, संवत् भी किसी पुरुष-विशेष के द्वारा, किसी यहुत पड़े काम की यादगार में, चलाया जा सकता है। रोमन- संवत् रोम-निवासियों के नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु यह रोम-नगर की नीव डालने की घटना-विशेष को यादगार में चलाया गया था। इसी तरह मालय-संवत् का भी चलाया जाना, किसी एक मनुष्य के द्वारा, किसी विशेष घटना के कारण, सर्वथा सम्भव है । मालवे में मालव लोग बहुत पुराने जमाने से रहते थे। गौतम बुद्ध के समय से ही उन का नाम-निर्देश साफ तौर पर किया गया पाया जाता है । पर उस जमाने में मालव-संवत् का प्रचार न था। उसका श्र- स्तित्व ही न था। इस संवत्सर की उत्पत्ति ईसा के ५७ वर्ष पहले हुई मानी जाती है। इससे यह देखना चाहिए कि उस समय मालवे में कोई बहुत बड़ी घटना हुई थी या नहीं और विक्रमादित्य नाम का कोई राजा यहाँ था या नहीं।
जिन ताम्रपत्रों के आधार पर डाकर कीलहान ने अपनी कल्पना का मन्दिर खड़ा किया है उनमें से एक बहुत पुराने पत्र में 'मालवेश' शब्द आया है। यह शब्द सी मालव-संवत् के सम्बन्ध में है। इससे यह सूचित है कि इसमें यद्यपि संवत्सर के प्रवर्तक राजा का नाम नहीं, तथापि यह संवत् किसी राजा का चलाया हुश्मा ज़रूर है। यह नहीं
कहा जा सकता कि इस ताघ्रपत्र के खोदने और खुदवाने