कालिदास ।] का लेख निकला, उधर जून ही के हिन्दुस्थान-रिव्यू में पारडेय जी का। पाण्डेय जी कहते हैं कि जो आविष्कार मैंने किया है उसका इतित मुझे स्मिथ साहय और मुग्धानलावाय्य स मिला था। उसी इशारे पर मैंने अपने अनुमान की इमारत खड़ी की है। मेरी सारी फल्पनाये और तर्कनायें मेरी निज की हैं। इनके अनुसार कालिदास ईसा की चौथी शतादी के शन्त और पाँची के प्रारम्भ में थे। श्री राजेन्द्रनाथ विद्याभूषण-प्रणीत फालिदास-नामक समालोचना - अन्य की भूमिका में धीयुत हरिनाथ दे महाशय ने भी पाएडेय जी फा मत लिरा है। उसमें उन्होंने कहा है कि- (१) तस्मै सभ्याः सभाव्य गोप्चे गुप्ततमेन्द्रियाः (२) अन्याय गोप्ता गृहिणी-सहायः इत्यादि रघुवंश के श्लोकों में गोरा, गुप्त, गोत्र, मादि पर गुमयंशी राजाघों के सूचक है। इसके सिपा- तनुशाशन वियतारका प्रमातारा शशिनेय शरी इस श्लोशार में जी उपमा है उसमे दितीय घर गुम का प्यनिवार्य निकलता है। पर्यश में जो र का दिग्विजय-पर्पन उसका मारम्म म प्रकार है- ... सगुनमूलनापन: एचपारिवान्यितः । . .. पलमाराव प्रतारिण-जिगीरा . .
पृष्ठ:कालिदास.djvu/३४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।