या इसीकी सभा में कालिदास थे। कारण यह कि ईसा फे ५७ पर्ष पूर्व विमामादित्य नाम का फोई राजा ही न था। जैसी कविता कालिदास की है बेसी कविता-यमी भाषा, पैसी मायमही- उस जमाने में थी ही नहीं। ईसा की पाँची और छठी सदी में, संस्कृत भाषा का पुनरुचीयन होने पर, पेसी कविता का प्रादुर्भाव हुआ था। इन सय पातों को मजूमदार महाशय मानते हैं। पर यशोधा के समय में कालिदास का होना नहीं मानते। ये कहते हैं कि त्य- वंश में जो इन्दुमती का स्वयंवर-वर्णन है उसमें उज्जैन के राजा कातीसरा नम्बर है। यदि कालिदास यशोधर्मा के समय में या उसकी सभा में होते तो घे ऐसा कमी न लिखते । क्योकि यशोधा उस समय चक्रवर्ती राजा था। मगध का साम्राज्य उस समय प्रायः विनष्ट हो चुका था। यशोधमी मगध की अधीनता में न था। अतएव मगधाधिप के पास पहले और उज्जैन-नरेश के पास उसके याद इन्दुमतों का जाना यशोधा को असह्य हो जाता । अतपय इस राजा के समय में कालिदास न थे। फिर किसके समय में थे? वायू साहिय का अनुमान है कि कुमार गुप्त के शासन के अन्तिम भाग में उन्होंने प्रन्य-रचना प्रारम्भ की और स्कन्दगुप्त की मृत्यु के कुछ समय पहले इस लोक की यात्रा समात की Iत की पुष्टि में उन्होंने और भी कई बातें लिखी है।
पृष्ठ:कालिदास.djvu/३२
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कालिदास।]