कालिदास का प्राविर्भाय-काल । या पटना थी। पर अन्तिम राजा यशोधर्मा की राजधानी उज्जैन थी। यह पिछला राजा गुस-राजाओं का करद राजा था। पर गुप्तों की शक्ति क्षीण होने पर, यह खतन्त्र हो गया था। इन राजानों में से तीन राजाओं ने-पहले, तीसरे और चौथे ने-विक्रमादित्य की पदवी ग्रहण की थी। ये राजा बड़े प्रतापी थे। इसीसे ये विक्रमादित्य उप-नाम से अभिहित हुए। परन्तु डाकृर हार्नले मादि की पूर्वोक्त युक्तियों के अाविष्कार-विषय में एक झगड़ा है। थायू धी० सी० मजूमदार कहते हैं कि इसका यश मुझे मिलना चाहिये । इस विषय में उनका एफ लेख जून १९११ के माडर्न-रिव्यू में निकला है। उसमें ये कहते हैं कि १६०५ ईसवी में मैंने इन यातों को सव से पहले हुँद निकाला था। यँगला के भारत- सुहद नामक पत्र में “शीत-प्रभाते" नामक जो मेरी कविता प्रकाशित हुई है उसमें सूत्र रूप से मैंने ये यातें छः-सात वर्ष पहले ही लिख दी थी। १६०६ में इस विषय में मेरा जो लेख रायल एशियाटिक सोसाइटी के जर्नल में निकल चुका है उसमें इन बातों का विचार मैंने किया है। श्रय .इनका मत सुनिये- साकर हानले को राय है कि उज्जैन का राजा यशो- धर्मा ही शकारि-विक्रमादित्य है और उसके शासन-काल,
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