कालिदास ]
भप्यप्रयोमन्त्रकृतामृषीणा
कुरारायसुद्धे कुशल गुरुरते।
यतस्त्वया शानमशेपमाप्त
लोकेन चैतन्यस्विोपरश्मः ॥
हे कुशाग्रबुद्ध ! कहिए, आपके गुरु तो मज में है ? ये एफ असाधारण विद्वान् हैं-ये सर्वदशी महात्मा हैं ! जिन ऋषियों ने येदमन्त्रों की रचना की है उनमें उनका स्थान सबसे ऊँचा है। मानकर्तामों में ये सबसे श्रेष्ठ हैं। जिस तरह सूर्य से प्रकाश माप्त होने पर यह सारा जगत्, सुबह, सोते से जाग पड़ता है, ठीक, उसी तरह, आप अपने पूजनीय गुग से समस्त शान-राशि प्राप्त करके और अपने अशान-जात अन्धकार को दूर करके जाग से उठे हैं। शानायस्या की प्राशि पड़ी ही सुपदायक होती है, उसकी महिमा अवर्णनीय है। एक तो आपकी बुद्धि समाय ही से पुरा की नोक के समान तीय, फिर, महर्षि परतन्तु रोमशेल ज्ञान की प्राप्ति । पा फहना है। महाराज चाप धन्य है।
रयु ने, यहाँ पर, यरतातु की जो प्रशंमा की और उनके लिए जो विशंपण दिये हैं उनसे याही व्यापक पनि निकलती है। ऐतिहासिक दृष्टि में यह पई महाप की है। उससे कालिदास के मानसिकायों का भी सूप पता चलता है।दो हजार पर पहले की ये यात सममन धार सोचने
लायक है।