[कालिाग की दिगाई मानीन भारत की एक माना।
समपिता निधि नि-
मोमानामापायी।
शिपिनिरिभातमा
मानिएपनिदियुग
प्रासाल के रामा कहलाये जानेयाले लोगों की तरह स्यु अपने ग्रामन पर इरा नहीं बेटा रहा। कोरस को दंगते ही यह उटा। उटा ही नहीं, उठकर पद कुछ दूर तक गया भी भोर रापोधनी अतिथि को साथ लिया लापा । रय पद्यपि, उस समय, सुपर्ण-सम्मासि से धनयान् न था, तथापि मानरूपी धन को भी जो धन समभाते हैं उनमें यह मयस घद चढ़कर था। महा-मानधनी होने पर भी रप ने उस तपोधनी ग्रामण की विधिपूर्वक पूजा की। विधा और तप के धन को उपने भोर मय धनों से पढ़कर समझा। पत्रपती राजा होने पर भी रघु को यभ्यागत के पादरातिथ्य की क्रिया अच्छी तरह मालूम थी । अपने इस शिया-ज्ञान का यथेष्ट उपयोग करके रघु ने कौत्स को प्रसन्न किया । जय पह स्वरय होकर प्रासन पर थेट गया तब रघु ने नम्रतापूर्वक, भृकुटी या हाथ के इशारे से नहीं, किन्तु पाणी द्वारा, • कुशल-समाचार पूछना प्रारम्भ किया । इतना ही नहीं, राजा ने हाय भी जोड़ने की जरूरत समझी । विद्वान् और
तपस्थी की महिमा तो देखिए ।