[ कालिदाम का प्राविय-काल । समाप्त पञ्चम्यामपति धरणि मुन्नृपती। । सितेपने पापेथुधहितमिदंशास्त्रमनधम्॥ इससे सूचित होता है कि जिस समय राजा मुज राज्य करता था उस समय यह पुस्तक समाप्त हुई और उस समय विक्रमादित्य को मरे १०० घर्ष हुए थे। मुज का समय ईसा की दशवी शतान्दी है। इस हिसाब से उसे हुए कोई ४०० वर्ष हुए। यदि ६०० घों में १०५० वर्ष जोड़ दिये आय तो १९५० हो जायँ अर्थात् यह संख्या विक्रम संवत् के लगभग पहुँच जाय। इससे स्पष्ट है कि . एक हजार वर्ष पहले भी पड़े पड़े पण्डित, और मालवे के पण्डित, विक्रम के अस्तित्व को मानते थे। उसे पौराणिक किस्से-कहानियों का भूत नहीं समझते थे। कालिदास का समय सिा के पहले, पहले शतक में, सिद्धनाय है। विक्रम का और कालिदास का अखण्ड साय थां। जनश्रति यही कहती है। श्रतएव विक्रम की ऐतिहासकता को एक-दम ही न कबूल करना जरा साहस का काम है। कितने ही विकमादित्य हो गये हैं। ईसा के ५५ वर्ष पहले कोई विक्रमादित्य न था, इसका तो प्रमाण ' श्राजतक कहीं मिला नहीं। जनश्रुति और अमितगति श्रादि पण्डितों के कथन से तो उसका होना ही साबित होता है। यदि उसके होने का कोई ऐतिहासक प्रमाण नहीं तो उसके न होने का भी कोई ऐतिहासक प्रमाण नहीं इस तुल्य-चलत्व
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