[ कालिदास की कविता में चित्र यनाने योग्य स्थल ।
पार्वती ने उनका उचित यातिथ्य किया । शदर ने तपस्या फा कारण पूछा। पार्वती की सपियों ने सब हाल कहा। सुनकर यटु-पेशधारी शङ्कर ने अपनी निन्दा प्रारम्भ की। महादेव में उन्होंने सैकड़ों दोप यतलाये और पाप्ती से कहा कि इस पागलपन को छोड़ दे। किसी और योग्य पर के साथ विवाह कर । पार्वती ने शङ्कर के प्रत्येक पाप का उत्तर दिया। उसने कहा कि तुम मूर्ख हो। तुम महादेव को जानते ही नहीं । इसीसे ऐसी अपमानकारक यात करते हो। पार्वती के उत्तर का जय महादेव प्रत्युत्तर देने लगे तब पार्वती यहुत बिगड़ी। उसने अपनी सखी से कहा-इसे मना कर। यह फिर भी कुछ प्रलाप करना चाहता है। देख, इसका होट फरफ रहा है। अथवा, इसे यकने दे। मैं खुद ही यहाँ से उठी जाती हूँ। क्योंकि महात्माओं की निन्दा करनेवाले ही को नहीं, उसे सुननेवाले को भी पाप होता है। यह कहकर बड़ी शीघ्रता से पार्वती अपने श्रासन से उठी और शङ्कर को छोड़कर शन्यत्र चली जाने को तैयार हुई। तय शङ्कर ने अपना असली रूप धारण करके उसे पकड़ लिया--उसे चले जाने से रोका-
____ तंवीक्ष्य वेपथुमती सरसागयष्टि
निक्षेपणाय परमुद्धृतमुदहन्ती।
. मार्गाचनपतिकराफुलितेय तिन्धुः
शैलाधिराजतनया न ययौ न तस्यौ।