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[कालिदास की कविता में चित्र बनाने योग्य स्थल । जाता है। अतएव इस घटना का दर्शक चित्र क्या घनाये जाने योग्य नहीं?

[२]

विदर्भ नरेश के यहाँ, कुण्डिनपुर में, उसकी बहन इन्दुमती का स्वयंवर है। अज-कुमार भी स्वयंवर में गया है। स्वयंवर-स्थल में कितने ही राजा सजे हुए पैठे हैं। इन्दुमती के हाथ में संवरण-माला है। सुनन्दा नाम की एफ प्रगल्भा स्त्री उसके साथ है। जिस राजा के सामने इन्दुमती जाती है, सुनन्दा उसके रूप, गुण, पेयं नादि का वर्णन करती है। इन्ठुमती इस तरह कई एक राजाओं और राज-कुमारों को निराश करके आज के पास पहुँची। सुनन्दा ने उसका गुण-वर्णन बड़े हो मधुर और मनोहर शब्दों में किया। जब अज-विषयक वर्णन करके सुनन्दा चुप हो गई तप इन्दुमती ने पाँच उठाहर श्रम की तरफ देखा। देखते ही यह उस पर श्रागन हो गई। मुह से तो यह कुछ न बोल सकी। पर उसके हृदय की प्रीति, रोमाञ्च के बहाने, शरीर से फूट निकली। सुनन्दा यह धात ताई । तब उसे दिल्लगी सूझी। उसकी यह दिलगी और इन्दुमती का उत्तर, रघुवंश में जैसा है, सुनिए-

तथागतायां परिहासपूर्व

साया समो वैरभृदाबभापे।

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