कालिदाम]
अपने अपने देश के विग्यान कयियों के कार्यों के सचित्र संस्करण निकाल हैं। दस, हमारे अभागे भारत के प्राचीन संस्टन-काधियों के काव्य कय सचित्र निकलते हैं।
फालिदास के कामों पर यही चित्रकार अच्छा चित्र पना सकेगा जिसने उन्हें अच्छी तरह पढ़ा और समझा है। इसके लिए संस्कृत मानने की श्रावश्यकता है। गजा रविया संस्थत थे। कलकत्ते के दो-एक वर्तमान चित्रकार भी संस्कृत जानते हैं। इसीमे ये भी इस विषय के अच्छे चित्र बना सके हैं। हमने दो-एफ यार इस तरह के चित्र बनवाने की चेष्टा की, पर हमारी चेष्टा व्यर्थ गई। कालिदास के कार्यों में ऐसे तो सैकड़ों स्थल हैं, जिन पर अच्छे से अच्छे चित्र बन सकते हैं, तथापि उनमें से कुछ स्थन-विशेष बड़े ही मारके के हैं। उस तरह के स्थल- विशेष दो-चार नहीं, यहुन हैं। उन सबका उल्लेख इस लेख में न हो सकेगा। केवल छः-सात का उल्लेख हम यहाँ पर करेंगे।
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रघुवंश की यात है। राजा दिलीप निरपत्य थे। पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से ये रानी-सहित वशिष्ठ के प्राथम में पधारे। वशिष्ठ ने कहा-हमारी नन्दिनी नामक धेनु की
सेवा फगे। पहा तुम्हारी इच्छा पूर्ण करेगी। राजा रोज