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[ कालिदास की कविता में चित्र यनाने योग्य स्थल ।

को खुशख़त लिखाकर उनके प्रायः प्रति पृट को प्रपिद्ध प्रसिद्ध वित्रकारों द्वारा चित्रित कराते थे। ऐसे ग्रन्य बड़े ही पहु- मूल्य होते थे। इनके दर्शनं अव भी कभी कभी हो जाते हैं। अब तो ये प्रदर्शिनियों में रक्खे जाते हैं और दर्शक उन्हें एक अजूबा चीज़ समझते हैं।

कालिदास कितने ऊँचे दरजे के कवि थे, इस यात के बतलाने की जरूरत नहीं। उनके कान्पों को कभी किसी ने सचित्र लिखवाने का प्रयत्न किया है या नहीं, मालूम नहीं। शायद यहुत पुराने जमाने में किसी ने किया हो तो किया हो। या कहीं किसी रियासत के पुस्तकागार में ऐसा कोई ग्रन्थ पड़ा हो तो हो सकता है। हाँ, इधर, कुछ समय से कालिदास के काव्यों में धर्णित दृश्यों और पात्रों के चित्र बनने लगे हैं। शकुन्तला-जन्म, शकुन्तला-मेनका-मिलन, शकुन्तला पत्र-लेखन, शकुन्तला-दुष्यन्त, दुर्वासा-शाप, उर्वशी और पुरुरवा, मदन दहन, प्राण-घातक-माला, मेघदूत का विरही यक्ष-इत्यादि चित्र ऐसे ही चित्रों में से हैं। पर ये दाल में गमक के भो यराबर नही। कालिदास की कविता के सम्बन्ध में सैकड़ों चित्र धन सकते हैं और बहुत उत्तम उत्तम धन सकते हैं। उनके बन जाने से और उनका मिलान तत्सम्बन्धिनी कविता के साथ करने से इस महाकवि की

कीर्ति और भी उज्ज्यलतर हो सकती है। पाश्चात्य देशों ने

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