कालिदास।]
कवि और चित्रकार में किसका आसन उच्चतर है, मका निर्णय करना कठिन है। पयोंकि किसी चित्र के भार को पविता-द्वारा व्यक्त करने से जिस प्रकार अलौकिक मानन्द की प्राप्ति होती है उसी प्रकार कविता-गत किसी भाव या दृश्य को चित्र द्वारा प्रकट करने से भी प्रानन्द की प्राप्ति होती है। चित्र देखने से नेय तृप्त होते हैं; कविता पढ़ने या सुनने से कान। अत्तएर यदि एक ही पस्त, श या भार फा व्यक्ती-फरण कविता और चित्र दोनों के द्वारा हो तो नेत्र और कान दोनों की एक ही साय तृप्ति होने से अवश्य ही मानन्दानिरेक को पृद्धि होगी। यही समझकर भारत के शाधुनिक चित्रकारों ने पुरा गरें और प्राचीन कान्यों के मुख्य मुख्य हश्यों के चित्र पाचकर शौख और कान के मायामान पारस्परिक विवाद को दूर करने की चेष्टा की है।
प्रमिर प्रसिद्ध प्रानीन काम्यों में अनन्त स्थल ऐसे हैं जिन पर बड़े ही मार--गरं चित्र तैयार किये जा सकते हैं। सुनमोदाम पं गमयरितमानस के मान-विशनों पर किलो मनोदर चित्र यनाये जा सका है, यह पात टिपन प्रम के नागप्रकाशित गमयत्मि-मानम के नपने मालम गफगाई। जर पुस्तादाय गे निपी जातीगीमा शार, पागार, गा, मदाराधार समीर यादमी गमायण,
महाभारत, मादनामा, पायानामा, tr गुनाना प्रादिगो