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, कालिदास ।

लगी। अर्थात् ये भी शहर को देखने में लीन हो गई। अत्र किसी का व्यवसाय मारा जाता है तय यह लाचार होकर जिसका अधिक चलन होता है यही व्यवसाय करने लगता है। ठीक यही दशा हिमालय के नगर में रहनेवाली स्त्रियों की इन्द्रियों की हुई। कैसी अद्भुत उक्ति है !

घधू-घर के रूप में जिस समय उमा और महेश्वर अग्नि की प्रदक्षिणा करने लगे उस समय कालिदास को एक गहरी पैशानिक उपमा सूझी। आप कहते हैं-

मदक्षिणपक्रमयालयानो-

पिस्ताग्मिधुन कासे।

मेरोरुपान्तेष्विव वर्तमान-

मन्योन्यसंसहमहखि पामम् ॥

एक दूसरे से मिला हुमा, अर्थात् संश्लिष्ट, दिन और रात का जोड़ा मेरु-पर्वत के चारों तरफ जिस तरह सुशोभित होता है, उसी तरह पढ़ी दुई लपटवाली आग की प्रदक्षिणा करते समय उमा और महेश्वर का जोड़ा शोभायमान हुआ। धीयुक्त याल गदाधर तिलक ने अपनी घेद-विषयक नई पुस्तक में लिखा है कि मेक-प्रदेश से प्राचीन भार्यों का मतलय उत्तरी ध्रुघ के आसपास के देश से था। पोंकि पही दिन और रात एक-दूसरे से लिपटे हुए मालूम होते हैं।

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