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[ कालिदास की वैवाहिकी कविता ।

मसङ्ग को रञ्जना करते हुए अपनी अलौकिक कवित्व-शक्ति का परिचय दे १ प्रस्तु।

इस मौके पर स्त्रियों की जिन चेष्टाओं का वर्णन कालिदास ने किया है उन सब को हम छोड़ देते हैं। इस विषय का सिर्फ एक ही पच हम देते हैं। यह यह है-

तमेकदृश्य मयनैः पिमन्यो

नायौं र जामुविस्यान्तराणि।

तथा हिशेषेन्द्रियवृत्तिरास्त

सारममा परिव पविष्टा ॥

- उस पक-मात्र दर्शनीय शङ्कर को--उस एक-मात्र तमाशे को-त्रियों अपनी आँखों से पीने सी लगी। सुनने और स्पर्श करने आदि दूसरे विषयों की तरफ से उनकी शेष इन्द्रियाँ एक साथ ही खिंच भाई और ये सब उनकी आँखों में घुस सी गई। यह न समझिए कि बाकी पची दुई इन्द्रियों का कुछ ही अंश उन स्त्रियों की आँखों में चला गया। नही, उनका सोश उनमें प्रवेश कर गया। उनकी मात्मा आँखों में घुस गई। अर्थात् जब कान, नाक और स्वा आदि ने देखा कि उनके लिए कोई काम ही नहीं रहा, तब अपनी वृत्ति को छोड़कर उन्होंने आँखों के भीतर अपना

अपना स्थान कर लिया और ये भी आँखों का काम करने

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