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कालिदास

इसी सयाल से कालिदास ने भी ऊपर का श्लोक. कहा है। उसमें आप कहते हैं-सिर मुकाये हुए उमा को उन सती खियों ने यह आशीर्वाद दिया कि अपने पति का अखण्डित, भर्यात् सम्पूर्ण,प्रेम-जिसका जरा भी अंश और किसीको नहीं मिला है-तुझे मिले। आशीर्याद हमेशा पदकर दिया जाता है और पूरे आशीर्वाद का फल पिरली ही खी को मिलता है। परन्तु उमा ठदरी उस्ताद ! पाशीर्वाद देनेवाली उन सौभाग्यवती नारियों के भाशीर्याद से भी हज़ारों गुने अधिक फल को यह दया पेठो। उसमे अपने पति का प्राधा शरीर ही छीन लिया। यह अपने पति की इतनी प्रेयसी हो गई कि पति ने उसे अपने आधे शरीर में ही स्थान दे दिया। अर्थात् प्रम की पराकाहा दो गई। पार्यती ने प्रेम-प्राशि की सीमा का भी उल्हापग कर दिया। और यह सीमोल्लंघन कालिदास की पदोलत एक मये स्प-रग में हम लोगों को देपने को मिला।

जब कालियाम मे पायंती से पुरसत पातप चाप पर की तरफ पते। उनकी पारात का साजोसामान टीक करके, उनके साथ विवाह समारम में शामिल होन- पाले यतादिकों को एकत्र करके, भोरगुलह की मीकिक परपना प्रादिका वर्णन करके, मापने जब उन्दै तयार

पापा, तब उनके यहां प्राये हुए लोसानादि का उम

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