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फालिदास ।] युक्तिसङ्गत मालूम होता है। यहाँ पर यह श्रादेप हो सकता है कि कालिदास को ऐसी विशुद्ध संस्कृत के खुदे हुए लेख, ईसा के सौ वर्ष पहले के कोई नहीं मिले। इस तरह का सय से प्राचीन लेख जो मिला है यह ईसा की दूसरी शताब्दी का है। अतएव यह फैसे माना जा सकता है कि उससे दो-ढाई सौ वर्ष पहले ऐसी विशुद्ध और परिमार्जित भाषा लिखी जाती थी, अथवा पेसे मनोहर काव्यों का निर्माण होता था। इसका उत्तर यह है कि अप्राप्ति का अर्थ अभाव नहीं। कालिदास के समय के विशुद्ध-भाग-पूर्ण शिला-लेख या ताम्रपन नहीं मिले, इससे यह अर्थ कहाँ निकलता है कि ऐसी भाषा उस समय यो ही नहीं। फिर, सारी भारतभूमि तो खोद डाली नहीं गई। सम्भय है, इस तरह के लेस फही अयतक दरे पड़े हो। पाल्मीकि रामायण को तो प्रोफेसर मैकडानल भी ईसा से पुगनी पनाते हैं। उग कुछ हिस्से को प्रापमा से ५०० वर्ष पुराना कहते हैं। प्रय पाप यदि उसके कम पुराने हिस्म की मावा की कालिदाम की कविता से मिला देगे तो, हमें विश्वास है कि दोनों में पद्भुत यधिक भेद न पायेंगे- (१) घशकरपोग्मीलिनताका। महो रागपनी माया जहाति शमाया।