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[ कालिदास की पैवाहिको कयिता।

विकारों के उत्ष्ट शब्द-चित्र का ही नाम कयिता है।

कुमार-सम्भय की पहले-पहल र किये हमें कोई १८ वर्ष हुए। हम सातयाँ सर्ग पढ़ रहे थे। इस सर्ग में सकर ने अरुन्धतीसहित सप्तपियों को हिमवान् के पास भेजकर पार्वती की मैंगनी की है। यह उन्होंने पार्वती ही की इच्छा से किया है। जय उन्होंने पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके पाणिग्रहण का अभियचन दिया, तय पार्वती ने अपनी सम्बी के द्वारा उनसे यह कहलाया कि साप कृपा करके मुझे मेरे पिता हिमयान से माँग लें और उनकी अनुमति से यथाविधि मेरा प्रहण फरें। शकर ने यह यात स्वीकार कर ली। इसलिए उन्होंने ससपियों को हिमाचल के पास भेजा। पे हिमालय के घर गये। हिमा- लय उस समय यैठे हुए थे। उनकी पत्नी मेना और कन्या पार्वती भी यही उनके पास थी। इन दोनों के सामने ही ऋपियों ने पार्वती के विवाह की पात छेड़ी। पार्वती तणी धी। विवाह की यात समझती थी। शिय को स्वामी बनाने के ही इरादे से उसने तप किया था। परन्तु विवाह- यार्ता प्रारम्भ होने पर, कई श्लोकों तक पार्वती की किसी चेष्टा का वर्णन जय हमको न मिला तय हमारे हृदय में फालिदास पर कुछ कुछ चिराग उत्पन्न हुअा। जिसके

विवाह की बातचीत हो रही है वह समझदार है; यह यहीं

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