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कामियाम

उज्यान दोगा उनका यह अनुभव तो अवश्य करेगा, पर उनको शद-वारा, चित्र की तरह, दूसरों को दिया सांगा। इस शिप उस कालिदास की शरा जाना पड़ेगा। फालिदास ही में इस तरह के चित्र दिनाने की लोकोत्तर गति है। ऐसे कधिजो दूसरों के विकारों के चित्र चकर, नामी चित्रकारों के भी विधान-अभिमान को पूर्ण कर सकते हैं।

थीहर्ष ने लिसा है कि दमयन्ती की प्राप्ति के 'अनन्तर नल के घर में घे घे यात हु जो "महा-कविमिरप्य पीक्षिताः" थी, अर्थात् जिनको महाकवियों ने भी नई देना था। इससे यह सूचित होता है कि जिन बातों को और लोग नहीं देख सकते उनको भी महाकवि देख लेते है। पर नल ने महाकत्रियों को भी मात कर दिया। क्योंकि उसने ऐसी भी अनेक यातों का अनुभव किया-उनको कर दिखाया-जिनका स्वम महाकवियों तक ने भी नहीं देखाथा। इसकी सत्यता की गवाही महाकवि ही दे सकते हैं। पर एक यात ज़रूर सच है कि जोयाते औरों को नहीं समातीं वे कवियों को ज़रूर सूझ जाती हैं। यही नहीं, किन्तु ये उनका वर्णन मी कर सकते हैं। और ऐसा अच्छा कर सफते हैं कि हृदय पर पर्णित विषय की तसवीर सो खींच देते हैं। जितने रस ..जितने भाप हैं, सय मन के विकार है, और कुछ नहीं। इन


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