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कालिदास ।

करके अपनी स्वार्थपरता मही प्रकट करता। यह मरनी दयिता के जीवन को नए होने से बचाने की क्या कर है। यत के सन्देश की पहली पंकि है-

"भमि मिपमपि विदि पाम

आप देखिए, इसमें यक्ष ने भर्तुः' पर रखकर पूर्णक शय को कितनी स्परता से प्रकट किया है। जान पूमकर .सने सन्देश के आदि में ही पति-गद का पाचक म-राम इसीलिए रफ्ना है जिसमें यक्षिणी सरकाल इस बात का जान हो जाय कि मेरा पति जीवित है। नियोगिनी पति- मतामों के कान में यह शप जैसी भगृतय करता है उसका धन्दामा समी सापय कर सकते हैं। कपि परिचादता तो 'भर्नुमित्र की जगह 'मित्रं मर्नुः कर सकता था। उससे भी एन्द की गति में पापात माता। पतु मही, उसने पतिषी के कान में सबसे पहिले 'म का एमाना ही उचित सममा।

पूर्णाद पंलि में भर्तुः' का समझत और पर्ष पिर से मरा उमा भपिपरे पर भी है। सारेयसी पहली ति में इसके लने का भी का । पराग मारा मानो सहधर्मचारिली बोया मृवित रिपालि विपश मही हो गई-गौमाग्पयती पोरामामी

माता। (ससे प्रति मानमारा समापार

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