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[ कालिदास के मेघदूत का रहस्य ।

उसकी प्रशंसा नहीं हो सकती। यदि मेघ का मार्ग सुखकर न होता-और, याद रखिए, उसे बहुत दूर जाना था--तो दोन पाश्चर्य जो वह अपने गन्तव्य स्थान तक न पहुँचता । और, इस दशा में, यक्षिणी की क्या गति होती, इसका अनु- मान पाठक स्वयं ही कर सकते हैं। इसी दुःखद दुर्घटना को टालने के लिए ऐसे अच्छे मार्ग की कल्पना कवि ने की है।

श्राप कहेंगे, यह निर्व्याज-प्रेम कैसा कि यक्ष ने,सन्देश में, अपनी वियोगिनी पत्नी का कुशल-समाचार तो पीछे पूछा, पहले अपने ही को “अव्यापनः" कहकर अपना पुशल-वृत्त यतलाने और अपनी ही वियोग व्यथा का वर्णन करने लगा। इससे तो यही सूचित होता है कि उसे अपने सुख-दुःख का अधिक खयाल था, यक्षिणी के सुख-दुःख का पहुत ही कम ! नहीं, ऐसा न कहिए। यक्ष का यह काम उलटा आपके इस अनुमान का परडन करता है। आप इस बात को भूल गये है कि यक्षिणी का जीवन यत के जीवन

पर ही अयलम्बित है। उसमें संशय उत्पन्न होने से यह जीवित नही रह सकती। मेघदूत को पढ़कर यदि मापनेइतना भी न जाना तो कुछ न जाना। यक्षिणी के प्राणायलम्य पा हेतु यक्ष है। अतएप उसीके कुशल-समाचार सुनने से यक्षिणी सपना जीयन धारण करने में समर्थ हो सकती है।पक्ष को स्वार्थी न समझिए। यह अपनी पया का यर्णन

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