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[ कालिदास के मेघदूत का रहस्य ।

होती है, उन्हें कैसी कैसी याते सूमती हैं, और उन्हें अपने प्रेमपात्र तक अपना कुशलवृत्त पहुँचाने की कितनी उरक- एठा होती है।

यक्ष को अपने मरने-जीने का कुछ खयाल न था। खयाल उसे था केवल अपनी प्रियतमा के जीवन का। "दयिताजीवितालम्यनार्थम् ही उसने सन्देश भेजा था। उसकी दयिता का जीवन उसके जीवन पर अवलमियत था। उसके मरने अथवा जीवित होने में सन्देह उत्पम होने से उसकी दयिता जीती न रह सकती थी। अतएप यक्ष का सन्देश उसकी यक्षिणी को जीती रखने की रामबाण घोषधि थी। यह ओषधि यह जिसके द्वारा पहुँचाना चाहता था उसके सुख-दुःख का भी उसे यहुत ख़याल था। इसीसे उसने मेघ के लिए ऐसा मार्ग यतलाया जिससे जाने में उसे जरा भी कष्ट न हो। उसके मार्ग-भ्रम का परिदार होता रहे, अच्छे अच्छे दृश्य भी उसे देखने को मिलें, और देवताओं और तीर्थों के दर्शन भी हो। ऐसा न होने से मेघ मी क्यों उसका सन्देश पहुँचाने को राजी होता! फिर, एक यात और भी है। विरह-कातर यक्ष का सन्देश उसकी प्रियतमा तक पहुँचाकर उसे जीवन-दान देना कुछ कम पुण्य का काम नहीं। संसार में परोपकार की पड़ी महिमा है। उसे

करने का मौका भी मेघ को मिल रहा है। फिर मला पयों

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