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[ कालिदास के मेघदूत का रहस्य ।।

कर, फमी धीमे और कभी कुछ ऊँचे स्वर में अपने मन के. भाव प्रकट करता है। यही जान कर कालिदास ने; मन्दोकान्ता-वृत्त का उपयोग इस काव्य में किया है। और, यही जानकर, उनकी देखा-देखी, औरों ने भी, दूत-काव्यों में, इसी वृत्त से काम लिया है।

कवि यदि अपने मन का भाव ऐसे शब्दों में कहे । जिनका मतलप, सुनने के साथ ही, सुननेकाले फी समझ में: आ जाय तो ऐसा काव्य प्रसाद-गुण से पूरी कहा जाता है। जिस तरह पके हुए अंगूर का रस याहर से झलकता है उसी तरह प्रसाद-गुण-परिप्लुत कविता का भावार्थ शब्दों से झलकता है। उसके हृदयङ्गम होने में देर नहीं लगती।। अतएव, जिस काव्य में करुणाई-सन्देश और ममातिशय-: पोतक बाते हो उसमें प्रसाद-गुण की कितनी आवश्यकता है, यह सहृदय जनों कोयताना न पड़ेगा। प्यार की.बात: यदि- कहतेही समझ में न आ गई कारुणिक सन्देश यदि कानों की राह से तत्काल ही हृदय में न घुस गया तो उसे एक प्रकार निष्फल हो समझिए। प्रेमालाप के समय कोई कोश लेकर नहीं बैठता। करूणा क्रन्दन करनेवाले अपनी- उक्तियों में ध्वनि, व्यंग्य और नियता नहीं लाने यैठते । घेतो सीधी तरह, सरल शब्दों में, अपने जी को यात कहते

हैं। यही समझकर महाकवि कालिदास ने मेघ-दूत को

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