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कालिदास।

थे। यदि यह पात सत्य हो तो काश्मीर से धारा के मार्ग में जो नदियाँ, नगर, पर्यत और देश आदि पड़ते हैं उनसे कालिदास का पास अच्छा परिचय रहा होगा। धारा और पाश्मीर के पासपास के प्रदेश, नगर और पर्यंत प्रादि भी उन्होंने प्रयश्य देखे होंगे। मेघ को पतताये गये मार्ग में विशेष फरके न्दीका वर्णन है और यह वर्णन पहुत दी मनोद और प्रायः यथार्य है, अतएर को आधर्य नहीं जो काश्मीर ही फालिदास को जन्मभूमि हो और जिन पस्तुओं और सलो का उन्होंने इस काव्य में वर्णन किया है उनको उन्होंने मस्या देखा हो।

कवियों की पह सम्मति है कि विषय के भनुशल पदोयोजना करने से पाये विषय में राजीयता सीमा जाती है। यह विशेष पुलता है। उसकी सरलता, और गायों को मानन्दित करने की शक्ति, पर जाती है। रा काम में रमार भोर फाग-रस के मिश्रण की अधिकता। पर का सन्देश माणिक उनियों गं मरा है। जो मनुष कालिक मालाप करता , पाजो मांग के कारण अपने भेम-पात्र से मोटी मोटी बातें करता,यहमतपण रंदी-गंदी घाम चलना सादरता ही है। पाएर उसको पान मुनापात पापोयता, पाभोर पंगे

दो किसी में पड़ी मरी लगती। पहनी हरहहर.

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