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फालिदास ।

कर सकेंगे जितनी सुन्दरता से कि कवि ने राम के द्वारा सीता का नियमन कराकर यचित किया है। इसीमें यह फहना पड़ता है कि फात्रि संसार के सर्वप्रधान शिक्षक और सर्वप्रधान उपफारक है।

काव्य का सृष्टि-सौन्दर्य किसी निदिए विषय से ही सम्बन्ध नहीं रखता। केयल रूप, गुण या अवस्था-विशेष के वर्णन में ही सौन्दर्य परिस्फुट नहीं होता। देश, काल, पान, रूप, गुण, अवस्था, कार्य श्रादि की समष्टि के द्वारा यदि किसी सुन्दर यस्तु की सृष्टि की आय तो उस सृष्ट यस्तु के सौन्दर्य को हो यथार्थ सौन्दर्य कह सकते हैं। यह कवि-सृष्टि का परमोत्कर्ष है। अन्यथा, यदि और बातों की उपेक्षा करके नायिका के चिकुर-वर्णन से ही सर्ग का श्रधि- फांश भर दिया जाय तो उसमें सौन्दर्य आ कैसे सकेगा। उससे तो उलटी विरक्ति उत्पन्न होगी।

सृष्टि-नैपुण्य ही कवि का प्रथम और प्रधान गुरु है। उस सृष्टि-नैपुण्य के किसी अंश में त्रुटि या जाने से काम को जैसे अग-हानि होती है वैसे ही, लोक-शिक्षारूपी जिस उथ उद्देश-साधन के इरादे से कवि काव्य-प्रणयन करता है उसफी सिद्धि में भी व्याघात घाता है। जो कवि केवल दस-पांच श्लोकों की रचना करके किसी पदार्थ का केरल

पाहरी सौन्दर्य दिखाता है उसका यासन अधिकांश निरा-

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