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[कालिदास के प्रस्थों की मालोचना।

जनों के पान में प्राना बिलकुल ही असम्भव था। कालिदास को कवि-कालगम कहे जाते हैं, उनकी कविता में कौनसी ऐसी पाते हैं जिनके कारण उनका इतना नाम है, उनकी करिता से कैसी कैसी शिक्षायें मिलती हैं, उनके नाटक- पात्रों में क्या विशेषता है-यह सप इस समालोचना के पढ़ने से तत्काल मालूम हो आता है और कालिदास की प्रशंसा सहस्र मुस से करने को जी चाहता है। इस समालोचना से यह भी बात हो जाता है कि समालोचना के लिए कितनी विद्वत्ता को अपेक्षा होती है और उससे साहित्य तथा सर्च- साधारण को कितना लाभ पहुँच सकता है। हमारी प्रार्थना है कि जो लोग यँगला पढ़ सकते हैं वे इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें। जो नहीं पढ़ सकते हैं धे, यदि हो सके तो उसे सीखने का प्रयन करें। अकेली इस एक पुस्तक के पढ़ने के लिए ही यदि वे फंगला सीखें तो भी उन्हें अपना परिथम सफल समझना चाहिए। क्योंकि थोड़े ही परिश्रम से घे कालिदास की कविता का मर्म समझ सकेंगे और यह जान सकेंगे कि कवीश्वरों के चक्रवर्ती कालिदास की कविता की क्यों इतनी प्रशंसा है, उसमें पा गुण है, उसमें कितना रस है और उससे कितनी और किस तरह की शिक्षायें मिल सकती हैं। यह थोड़ा लाभ नहीं। उसकी प्राप्ति के लिए

किये गये परिश्रम की अपेक्षा यह बहुत अधिक है। ..

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