फालिदास।
समय समालोचिस लेख कत्तों पर भन्यार होने का प जर रहता है। जो सरस-रदय नदी, जिसने काम्य-सा में बच्ची गति मही प्राप्त की, जिसने अलमार-शाला परिशीलन महीं किया, जिसने अन्यान्य प्रसिल प्रति कपियों की कवितामो पो चिनार-पूर्पक नही पहा, पही कातिवास के फाग्यो की आलोचना करने पेठे तो जरा समालोचना कभी पापरतीय ग होगी। किसी किसी पत्र या पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए कोई रोग भेजा। सम्पाप मे उसे प्रशासगीप समझकर पास गरा, फिर पाई, रागी उसरी समातोमगा होने। किसी पर में हिमी अन्य पत्र के साथ मा मदीडिया सगीने उस पर पापाणे को पर्ण। फिर उस समालोमा में रसके पर-बार, गादी-पोड़े, मौकर-पार, पम्पादन साकीमायर ली जाने लगी। पद समापोपमानही समानायक के पवित्र मामन को बरालि और साहित्य- सरोपरको परिसरमा है।
पाधि या प्रकार हि मनमप से प्रामा करतागासगापाको परिकामा . सोपोरोजगातीहै। देगे समायोको समातोपना में माहिर शो और पोरे सराद मामलोपामिनी मोगा में।