[कालिदास के समय का भारत ।
फाल में; जैसी धार्मिक और नैतिक चर्चा होती थी घेसी ही भारतवर्ष में कालिदास के समय में होती थी। उस समय धर्म केवल शिव की उपासना करने और लोगों को दिखाने के लिए था, चाल-चलन के सुधार के लिए नहीं। उस समय किसी धर्म-सम्प्रदाय का अनुयायी न होना धुरा समझा जाता था, पर विलासिता या विषयन्यासना में लिप्त होना बुरा नहीं समझा जाता था। उस समय के राजा भी पड़े विसासी थे। राज्य में शान्ति बनी रखने और वंश- परम्परागत सत्यतानुयायी नियमों का पालन करने की इच्छा से ही राजाओं के दरबार में धार्मिक और नैतिक बातों का तदनुकूल समर्थन होता था; धार्मिक या नैतिक वुद्धि की प्रेरणा से नहीं। अच्छी कविता में नर्णन किये गये धार्मिक विचार सुनकर ये उतने ही प्रसन्न होते थे जितने कि विषय- पासना का वर्णन सुनकर होते थे। इस समय धर्म की और लोगों का ध्यान पहले की अपेक्षा घहुन पाम था। शराय पीने की प्रादत बहुत बढ़ गई थी। स्त्री-पुरुष दोनों खुल्लम- खुला शराब पीते थे। चरित्र की शुद्धता की तरफ भी लोगों फा यहुत कम ध्यान था। तो भी, अच्छे घरों की स्त्रियों को पातियत का बहुत सयाल था। इससे व्यभिचार बहुत नहीं बढ़ सका और गृहस्थाश्रम-धर्म में खराबी नहीं पैदा हुई।
इतिहास से पता लगता है कि दूसरे देशों में अब जव समाज