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फालिदास!]

चुनफर अपनी कविता के काम में लगाया है। इससे उनमी रचना देववाणी की तरह मालुम होती है। कालिदास की भावोद्बोधन-शक्ति ऐसी अच्छी थी कि पिछले हजार वर्ष के संस्कृत-साहित्य में सर्वत्र उत्तीशी प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है। उनकी कविता में संक्षितता, गम्मोरता और गौरव- तीनों धानें पाई जाती हैं। भाषा की सुन्दरता और प्रसहा- नुकूल शदों की योजना से उनकी रचना का सौन्दर्य और माधुर्य और भी पढ़ गया है। यों तो कालिदास ने सभी विषयों का वर्णन, यड़े ही शशित इन्दों में, फिश है। पर उनके ऐतिहासिक काव्य और नाटक यहूत ही अच्छे हैं। पनिहासिक काम्य-रचना में कालिदास मिल्टन में भी पा गये हैं। उनके नाटकों की भाग में असाधारण सुन्दरता और मधुरता है। यह भाग पोसाय.हा में व्यवहार करने साया है। पासिदाम को इन्ही श्रेष्ठ गुणोंगे गुन होकर ऐसे समय में जन्म लेने का मौभाग्य प्राश बुमा जिराफ साप उनकी स्वाभाविक सहानुभूति थी। उस समय की गमता उनके यर्णन करने की ति के अनुकूल थी। यह गभ्यता पिलागिना में, मौन्दर्य और शिस की गति में, शियापार में, मांसारिक विषयों कान में, और पिया तथा पुद्धि को पहन प्रादरीर में दंपने में, गोरप कीममता ग पान

पुध मिलती-मुखती भी। काग में, गौरदय गुरे रामप

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