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[ कालिदास के समय का भारत ।

साभाविक प्रवृत्ति सौन्दर्य की ओर है। सौन्दर्य-वर्णन में उन्होंने जैसी सफलता प्राप्त की है येसी और किसी विषय के घर्णन में नहीं।

कालिदास की तर्कना-शक्ति बहुत ही अच्छी थी।शहार और करुण-रस के वर्णन में वे सिद्धहस्त थे। कालि-दास में प्रधान गुण यह था कि वे प्रत्येक काव्योपयोगी सामग्री को-काव्य के प्रत्येक ग्रंश को-पड़े ही कौशल से मुदर घना देते थे। अपने वर्णनीय विषय की मूर्ति पाठकों के सामने खड़ी कर देने की जैसी शक्ति कालिदास में थीवैसी और किसी कयि में नहीं पाई जाती।

पड़े पड़े कवि जय यहुत उत्तजित होकर किसी पात का वर्णन करने लगते हैं तभी उनमें उस यात को प्रत्पक्ष-घत् दिखा देने की शक्ति पाती है। पर कालिदास में यह विलक्षण शक्ति सब समय वर्तमान रहती थी। इसी शक्ति के साथ अपनी सौन्दर्य-कल्पना की सर्वश्रेष्ठ शक्ति को मिलाकर वे काव्यचित्र बनाया करते थे। घे जैसे उत्तम विषय की कल्पना कर सकते थे वैसे ही उसे खूयसूरती के

साथ सम्पन्न भी कर सकते थे। भाषा और शब्दों के सौन्दर्य तथा उनकी ध्वनि और अर्थ आदि का भी ये धड़ा अयाल रखते थे। उन्होंने संस्त-भाषा के भाएडार से बहुतही ललित छन्दों और भाव-पूर्ण सरल शब्दों को चुन

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