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कालिदास। ]

देकर उनका वर्णन करते थे। सामयिक घटनामों का उल्लेन करते समय कमी कभी उनके भावी फल को भी के झलका देते थे। सपियर की तरह धर्म का मी उन्हें खूप नयाल था।

पेदान्त पर कालिदास का पूरा विश्वास था। पर आचरण उनका शैयों के सदृश था। मालूम होता है कि उन्होंने अपने समय और देश की प्रथा के अनुसार ही ऐसा आवरण प्रहण किया था, धार्मिक धुद्धि से नहीं। वे स्मृति चों के सिद्धान्तों को भी मानते थे और उनकी प्रशंसा भी करते थे। परन्तु उनका प्रात्मिक चरित्र उतना अच्छा नहीं मालूम होता। उनके पुरे चाल-चलन के विषय में बहुतसी बातें सुनी जाती है। उन्हें हम सत्य नहीं भी मान सकते हैं। किन्तु, कालिदास के काव्यों को देखकर कोई भी पक्षपात- रहित पाठक यह न कह सकेगा कि कालिदास धर्मानुरागी अथवा धार्मिक नियमों की पाबन्दी करनेवाले थे। उनके काव्यों में श्रेष्ठ आदर्श और अच्छे विचारों को प्रशंसा है, पर गह प्रशंसा काल्पनिक है। उनके अच्छे विषयों के घर्णन से यल उनकी कल्पना-शक्ति की श्रेष्ठता मात्र साबित होती है। सका प्रभाव भी अच्छे लोगों की ही कल्पना-शक्ति पर पड़ कता है। पाल्मीकि और व्यास के काव्यों की तरह उनके

मान्योंरित्र सुधारने की शक्ति नहीं है। कालिदास की

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