[कालिदास के समय का भारत । विज्ञानमूलक और सांसारिक हो गया था आत्मविया में भी सांसारिक भार प्रवेश कर गया था। परन्तु चारवाक के मंत को लोग पुरषा की दृष्टि से देखते थे। अतंगव नास्ति- कता ने बहुत जोर नहीं पकड़ा था। इसी समय प्रात्मविद्या, विज्ञान, राजनीति, और अनेक शिक्षक-कलाओं के नियम पनाये गये थे। इसी जमाने के शुरू में, यहाँ, दर्शन-शान के नियम पन रहे थे और शिल्प और विज्ञान की उन्नति हो रही थी। उपनिषदों के आधार पर पुराणों की रचना हो रही थी। घेदान्त और सांख्य के उत्तम सिद्धान्तों का मेल योग की क्रियाओं और न्याय सम्बन्धी विचारों के साथ होने लगा था। किन्तु ये काम पूर्ण महीं होंने पाये थे कि उज्जयिनी में कालिदास प्रकट हुए। उन्होंने लोगों की सामयिक प्रवृत्ति का पूरा ज्ञान प्राप्त किया था। उनके काव्यों से मालूम होता है कि ये बड़े भारी विद्वान् थे। उनका सम्बन्ध यड़े पड़े विसामो से था। ये हमेशा ममीरों के साथ रहा करते थे। ऐशो-आराम से रहना उन्हें बहुत पसन्द था। शिल्प और विज्ञान का उन्हें अच्छा शान था। राजनीति के घेरे पण्डित थे। दर्शन-शास्त्र में भी उनकी अच्छी पति थी। की यातों में ये शेक्सपियर के समान थे। शेक्सपियर की तरह घे भी कुछ दिन पहले की घटनाओं को सामयिक रूप
पृष्ठ:कालिदास.djvu/१२३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।